हम कई फ़िल्में देखते
है जिसमें हमें ये पता चलता है कि हमारी हिंदी फिल्मी किसी विदेशी पुस्तक पर
आधारित है, विदेशी साहित्य भी कहानी के मामले में काफी समृद्ध है लेकिन उस कहानी
का भारतीयकरण करते करते कहीं ना कहीं उसकी मौलिकता और स्वाभाविता वो कमाल नहीं कर
पाती है जो भारतीय परिवेश पर लिखी गई कहानी प्रभावशाली ढंग से कर पाती है। वैसे तो
विदेशी साहित्य भारतीय फिल्मों का प्रिय विषय रहा है लेकिन हिंदी साहित्य भी इस
मामले में पीछे नहीं है अपने इस लेख के ज़रिए हम हिंदी साहित्य के उन लेखकों की बात करेंगे जो बने हिंदी फिल्मों की प्रेरणा।
प्रेमचंद- उपन्यास
सम्राट के नाम से मशहूर प्रेमचंद के उपन्यास में तत्कालीन मध्यमवर्गीय समाज, उस
काल की सामाजिक व्यवस्थाओं और समस्याओं का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है। उनके
उपन्यास “गबन” पर इसी नाम
से 60 के दशक में फिल्म आई जिसमें सुनील दत्त और साधना ने अभिनय किया था। ब्रिटिशकालीन
भारत के बैकड्राप पर बनी ये फिल्म ऐसे मध्यमवर्गीय युवक की कहानी है जो अपनी पत्नी
की सोने का हार पाने की इच्छा पूरी करने के चक्कर में गबन के आरोप में फंस जाता
है। ये फिल्म नायिका के महत्वाकांक्षी से समर्पित पत्नी में तब्दील होने की कहानी
है।
एक गरीब किसान की
बेबसी लाचारी और महाजन की पत्थरदिली की कहानी है, “गोदान”। ये उपन्यास
तत्कालीन वर्गभेद पर प्रहार करते है। भले ही सामंतवाद ना रहा हो लेकिन उसकी जगह पूंजीवाद
ने ले ली है उनकी ये पुस्तक आज भी प्रासंगिक है, गोदान नाम से ही साल 1963 में
फिल्म आई जिसमें राजकुमार, महमूद और शशीकला ने अभिनय किया है। प्रेमचंद की
यथार्थवादी किताबों को जो लोकप्रियता मिली उसे फिल्मों में उतना दोहराया नहीं गया
जितना किया जा सकता था।
मन्नू भंडारी-
विद्य़ा सिन्हा और अमोल पालेकर की फिल्म “रंजनीगंधा” इनकी ही
कहानी “यही सच है” पर आधारित
है। फिल्म रजनीगंधा मध्यवर्गीय हल्के फुल्के प्रेमत्रिकोण को लेकर बनाई गई है
जिसमें नायिका अपने वर्तमान प्रेम और अतीत की यादों के बीच उलझकर रह जाती है और
आखिरकार ये समझ पाती है कि आखिर उसके जीवन का सच क्या है और उसका वास्तविक प्रेम
कौन है।
भगवती चरण
वर्मा- इनके उपन्यास “चित्रलेखा” की कहानी पाप
क्या है पुण्य क्या है इन सवालों के ईर्द गिर्द घुमती है इसी पर आधारित फिल्म एक नर्तकी और सन्यासी के
दृष्टीकोण की तरफ ले जाती है। इस पुस्तक के शीर्षक पर ही फिल्म बनाई गई जिसमें
अशोक कुमार और मीना कुमारी ने मुख्य भूमिका निभाई थी।
फणीश्वरनाथ
रेणु- फणीश्वरनाथ रेणु की “कहानी मारे गए
गुलफ़ाम” पर राजकपूर ने फिल्म बनाई जिसका नाम था “तीसरी कसम” इस फिल्म के
गाने बहुत मशहूर हुए, “सजन रे झूठ मत
बोलो” और “पान खाए
सैय्या हमारों”। इस फिल्म में राजकपूर ने भोले भाले गाड़ी
हांकने वाले हीरामन का किरदार अदा किया था और वहीदा रहमान ने नौटंकी कपंनी में काम
करने वाली हीराबाई का किरदार अदा किया था। ज़िंदगी में
आए कड़वे अनुभवों के बाद हीरामन पुरानी
भूल फिर ना दुहराने की कसमें खाता है।
चंद्रधर शर्मा
गुलेरी- चंद्रधर की कहानी “उसने कहा था” के ही शीर्षक
पर फिल्म बनीं थी जिसमें सुनील दत्त और नंदा ने अभिनय किया था। विश्वयुद्ध के वक्त
के इर्द गिर्द घुमती ये कथा प्रेम, त्याग, वीरता और अपने वचन के प्रति प्रतिबद्धता
जैसे पहलुओं के समेटे हुए है।
गुलशन नंदा- भले ही
साहित्य में गुलशन नंदा को समीक्षकों से उतनी सराहना नहीं जितनी की हिंदी के दूसरे
साहित्यकारों को मिली है लेकिन लोकप्रियता और बिक्री के मामले में उन्हें स्टार
लेखक का दर्जा दिया जाए तो गलत नहीं होगा। 60 और 70 के दशक में भावनाओ, प्रेम और रिश्तों पर उनकी लिखी
किताबों ने धूम मचा रखी थी। “काजल”,“पत्थर के सनम”,
“कटी पतंग”,“शर्मिली”,“दाग” जैसी फिल्म
उनके ही उपन्यास पर आधारित थी।
हिंदी सिनेमा में कई और भी
फिल्में है जिसकी नींव बनें हिंदी के उपन्यास। जो आम जनमानस की सोच, समस्याओं और
जीवनशैली पर प्रकाश डालती है।
इमेज सोर्स- आयएमडीबी
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